गुरुकुल ५

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Thursday 29 March 2012

शाश्वत



विचारों के अनंत सागर में
पानी में बनी
सीधी लकीरें
स्वप्न या दिवास्वप्न

दिवास्वप्न ही जीवन है?
जीवन एक जंजीर?
जिसकी कडि़यां खुलती हैं

बंधकर खुलने तक
यह एक माया?
छल, भ्रम, अनुगूंज
या झंकार है?

एक से जुड़ी
दूसरी दत्तक कड़ी
कोरी कल्पना?
मिथ्या किंवा
शाश्वत सत्य
भ्रमबोध में
पुनः-पुनश्च

11/10/1975
चित्र गूगल से साभार

16 comments:

  1. भारी कठिन कविता है गा, कड़ी कड़ी ला जोड़ के।

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  2. Jaha gujarti hazaro kashtiya aise me lahro ko nind kaha ati hai,aur ab to sapano me hi tumase mulaquat hoti hai.

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  3. Jaha gujarti hazaro kashtiya aise me lahro ko nind kaha ati hai,aur ab to sapano me hi tumase mulaquat hoti hai.

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  4. बहुत सुन्दर...
    जीवन क्या है ये बड़ी विकट पहेली है...

    टंकण त्रुटि सुधार लीजिए.साश्वत को शाश्वत कर लें.

    सादर.

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  5. मेरी टिप्पणी खोजिये रमाकांत जी...

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  6. दिवास्वप्न ही जीवन है?
    जीवन एक जंजीर?
    जिसकी कडि़यां खुलती हैं
    बंधकर खुलने तक

    Ji han.... Bahut Gahari Soch Liye Panktiyan

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  7. वाह! सुंदर सृजन....

    दिवास्वप्न ही जीवन है साकार करें इसको आओ।
    जब तक रहना है बंधन मे, जय कृष्ण कृष्ण गाते जाओ॥


    सादर बधाई।

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  8. बंधकर खुलने तक
    यह एक माया?
    छल, भ्रम, अनुगूंज
    या झंकार है?... राग है अनुराग है या अनुभवों का भवसागर !

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  9. दिवास्वप्न ही जीवन है?
    जीवन एक जंजीर?
    bahut hi ahan artha liye rachana...
    behtarin rachana:-)

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  10. बहुत सुंदर । मेरे पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।

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  11. शाश्वत सत्य सी रचना..

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  12. बहुत ही बढि़या

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  13. बहुत शानदार....गहन अभिव्यक्ति ....!!!!

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  14. .................बहुत सुंदर
    पहली बार आपके ब्लॉग पर आना हुआ

    मैं ब्लॉगजगत में नया हूँ कृपया मेरा मार्ग दर्शन करे
    http://rajkumarchuhan.blogspot.in

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