गुरुकुल ५

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Tuesday 23 July 2013

आत्महत्या भाग २

मैं जीना चाहता हूँ जिंदगी तेरे संग


*****
ज़िन्दगी तुझसे तंग आ गया हूँ?
सोचता हूँ तुझसे होकर पृथक
एक नई पारी को अंजाम दूँ
बंध जाऊं नये बंधन में
जिसे मैं चाहता हूँ अपनी जान से ज्यादा
जो रहेगी बन सहचरी मेरे संग?
ज़िन्दगी के आखरी सांस तलक
तेरी तरह बिन कहे भरेगी माँग मेरी खातिर
या है सिर्फ छलावा है वो
ऐ क्या बोलती तू?

मरुथल की मृगमरीचिका सी कौंधती बिजली बन?

*****
चलते चलते शशि भाई ने कहा
पाजामे की क्रीज और गाड़ी का एवरेज
ज़िन्दगी को सफल बनाता है?
भाई साहब
आप करते रहिये पुत्रेष्टि यज्ञ
डालते रहिये समिधा
और पढ़ते रहिये पहाड़ा
माथे की सलवटे भले ही बदल जाये
नसीब में नहीं लिखा है तो
कुआँ में पानी, और चुनाव में जीत?
और प्रेम?
उम्र भर सांस फुल जाएगी

नाहक परेशां होंगे और संग में पड़ोसी जागेगा ताउम्र?

*****
आज सूरज की किरणों की तरह
केवल तुम्हे महसूस करता हूँ
विक्षुब्ध, बेबस हो बरस चुकी दिन रात
अब बनी रहो धूप छांव सी
आज तेरी फुहार नहीं भिगोती
तन और मन को
चचल हवा के झोके की तरह
छूकर चली जाती है


अंजुरी से फिसलते ज़िन्दगी ने कहा
ये होता है सबके साथ नई कोई बात कहाँ?

मैं जीना चाहता हूँ जिंदगी तेरे संग


क्यूं पूरी जिंदगी गुजर जाती है उहापोह में कसमसाते? 

क्रमशः

समर्पित मेरे छोटे भाई दीपक सिंह दीक्षित को
जिसका जीवन दर्शन और चिंतन प्रेरित करता है।

चित्र गूगल से साभार 

17 comments:

  1. एकदम ''आती क्‍या खंडाला'' टाइप दर्शन.

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  2. बहुत बढ़िया प्रस्तुति ....

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  3. बहुत खुबसूरत प्रस्तुति..आभार

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  4. जिन्दगी की धूप छाँव ऐसी ही आती-जाती है...

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  5. ज़िंदगी ने सही कहा..ये तो होता है सभी के साथ ..इस्मी नया क्या है!
    भावों की अच्छी अभिव्यक्ति.

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  6. प्रेरक जीवन दर्शन...
    सोचने को बाध्य करता हुआ..

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  7. सोचता हूँ तुझसे होकर पृथक
    एक नई पारी को अंजाम दूँ
    बंध जाऊं नये बंधन में
    जिसे मैं चाहता हूँ अपनी जान से ज्यादा ..

    भावों को कहने का नया सा अंदाज़ है आपका ... जब बंधना है जिंदगी के साथ तो अभी क्या बुराई है ... कुछ नया पण इसी मिएँ ढूंढ लिया जाए ...

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  8. बेहतर तो है यही कि न दुनिया से दिल लगे
    पर क्या करे जब काम ना बेदिल्लगी चले


    ------"इब्राहिम जौक"

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    1. सिंह साहब आपके इसी प्यार पर तो हम मरते हैं

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  9. अच्छी बात कही आपने।

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  11. सब ल जान-समझ के काबर बइहा सरिख गोठियाथस ग भाई ! " कठोपनिषद " पढ तैं बाबू । एकदम बने हो जाबे ।

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  12. बहुत खुब
    ह्रदय मे प्यार.....

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  13. उत्कृष्ट प्रस्तुति !

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  14. बाबु साहेब, अल्लोप्निषद घला पढबे तंहा जम्मो सवाल के जवाब पा जबे :)

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