गुरुकुल ५

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Friday 21 September 2012

बंद


विक्रम ने हठ न छोड़ा
कर दिया बंद का ऐलान
वेताल ने कहा
कल तुमने किया था बंद
बिना लोगो की सहूलियत को जाने?
तुम्हें कोई मलाल नहीं?

आज मैं तुमसे पूछूं?
राजन जरा सोचो
लोगो को सच का पता लग गया?
तो तुम्हारे कहाँ पर लात मारेंगे?
बिना तुमसे पूछे

किसे परवाह है तुम्हारे बंद की
न ये स्व स्फूर्त बंद था
न ही किसी जायज मांग पर
ये तो एक परंपरा का निर्वहन है

कल के बंद का कारण बतलाओ?
तुम खुद आज के बंद का कारन जान जाओगे?
कभी बंद से कुछ बदला या बदल पाओगे?
क्या बंद और क्या खुला?

तुम्हारे आवाज पर जिन्होंने बंद किया था
बिना तुम्हे बतलाये खोल दिया?
बुरा मान गये?
मैं तो तुम्हारी सहनशीलता का कायल हूँ

बसें चलीं मां की दवाई ला पाया?
गर्भवती बहन ने क्यों दम तोड़ दिया?
किराना दुकान खुला मिला?
रामू क्यों भूख से रोता रहा?

कितना बेचता, कितना लुटाता
कितना लुटता,क्या घर लाता?
जनरल स्टोर भी नहीं खुला न ही होटल
आज मंगलू को जूठन भी नसीब हुआ?

डर से बंद रहे पाठशाला?
खुली मिली बिन कहे मधुशाला?

वेताल ने झकझोर कर विक्रम को नींद से जगाया
राजन ये क्या?

तुमने देखा जिन लोगों ने बंद किया था?
खोल दिए उन्होंने ही दरवाजे तमाशे के बाद
डर से सड़ न जाये टमाटर और मिठाइयाँ
सावित्री भी सौदा सुलफा लेकर घर चली गई?

वेताल ने कहा राजन
अद्भुत है तुम्हारी ख़ामोशी
और दुधारी तलवार
कौन कटता है, कौन काटता?

एक और त्रासदी

सुनसान सडकों पर अचानक जुट गए लोग
किसी को कोई ऐतराज नहीं हुआ
कौन रोक पाया जानेवाले को?
बंद का असर हो गया बेअसर?

भारत बंद रहा?

लेकिन वो निकल लिये अकेले यात्रा पर
हल्की बारिश की फुहार में भी चल पड़े
संग संग बेटी, पत्नी, बहन, मित्र,सगे सम्बन्धी
नहीं रोक पाए ये यात्रा अनन्त

फिर कैसा बंद?

सन्नाटा भी गूंजता है?
और शोर में भी श्मशान की ख़ामोशी तैरती है?

हर सुबह की शाम होती है?
हर शाम की रात होती है?
हर रात की उजली सुबह होती है?
बंद का असर सूरज की किरणों पर?

कोई भी पार्टी?
कोई भी मुद्दा?
संकट के अवसर पर?
या निदान की खोज में? 

सर्वमान्य हल?
सर्वग्राह्य आज?
सर्वत्याज्य कल?
बंद कल, बंद आज, बंद कल?

 20.09.2012
चित्र फ्लिकर से साभार
श्री नंदकिशोर गुप्ता जी जिन्हे प्रेम से सभी नंदू बाबू कहते हैं
20.09.2012 को अनंत यात्रा पर निकल पड़े . उन्हे मेरी श्रद्धांजली 

19 comments:

  1. कोई भी पार्टी, कोई भी मुद्दा?
    संकट के अवसर पर, या निदान की खोज में?

    विचारणीय .... कोई परिणाम तो आज तक न आया ....

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  2. फिर से जाता डाल पर, कंधे से बेताल ।

    बिक्रम के उत्तर सही, फिर भी करे मलाल ।

    फिर भी करे मलाल, साल भर यह दुहराए ।

    कंधे पर बेताल, कभी शाखा लटकाए ।

    होता हल मजदूर, सदा वह हल को तरसे ।

    नेता का क्या मित्र, बंद देखोगे फिर से ।।

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  3. ये बंद वो बंद आखिर इन सब से हासिल क्या हो रहा है ,हर बार आम आदमी ही ठगा जा रहा है.
    कविता के माध्यम से इन आंदोलनों /बंद आदि के उस कड़वे पहलू को सामने रखा है जिस से आम आदमी को दो- चार होना पड़ता है.
    कविता में सामायिक और गहन सोच की अभिव्यक्ति है.

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  4. कोई भी पार्टी, कोई भी मुद्दा...जन कल्याण के लिए नही ये तो सिर्फ्र राजनैतिक तवे पर अपनी-अपनी रोटियाँ सेकर्ते हैं....

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  5. भारत बंद करना कोई समस्या का हल नही,सिर्फ राजनैतिक रोटी सेकना है ,,,,

    RECENT P0ST ,,,,, फिर मिलने का

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  6. कोई भी पार्टी, कोई भी मुद्दा?
    संकट के अवसर पर या निदान की खोज में?
    सर्वमान्य हल?
    सर्वग्राह्य आज?
    सर्वत्याज्य कल?
    बंद कल, बंद आज, बंद कल?

    बेहद सशक्‍त पंक्तियां ...आभार

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  7. भारत बंद ...की सोच पर लिखी गई व्यंग्य करती सार्थक रचना

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  8. माने सारे भेद खुल गए बंदों के.

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  9. ye to aag ko bujhane ke liye petrol dalne jaisa hai
    sundar rachna

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  10. गज़ब धुलाई भाईजी, गज़ब|

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  11. बंद करो अब ये बंद ,मंद पद रहे जीवन छंद

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    1. धन्यवाद राजेश कुमार सिंह जी आपका स्नेह और मार्गदर्शन सदैव यूँ ही बना रहे . आभारी

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  12. कब समाप्त होगी यह बंद की राजनीति....बहुत सटीक रचना..

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  13. प्रस्तुति अच्छी लगी ।

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  14. आपका यह विक्रम बेताल संवाद हमेशा कुछ नया लेकर आता है।

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  15. यह कविता बंद की राजनीति का मुखौटा उतार रही है।

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  16. कटु सत्य है.... जिससे आपने अवगत कराया है....

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