गुरुकुल ५

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Saturday 1 June 2013

तेरी झोली में


बड़ा अजीब सा रिश्ता है ज़िन्दगी तुझसे
जब भी नज़रें उठाता हूँ साबका है गम से

बड़ी शिद्दत से खोजता हूँ इश्क और नेमत
मेरी ताबीर में कल था वो आज भी यूँ ही

मैं माँगने ही तो गया था इश्क तेरे दर पे
तेरी झोली में क्या अंदाज़ा तू जाने मैं क्यूँ

यूँ ही जीकर अपनी खातिर तो कोई भी मर जाता है
मेरे खातिर हर पल जीने की तमन्ना रख तो जानूं

कौन याद रखता है आज ज़माने में किसे
हमने तो अपने दर का पता आपसे जाना

बनके सौदागर गर निभाना प्यार हो तुमको
यकीन क्यूं मरना मेरा मंज़ूर कर जानां फिर

चिड़ियों के उड़ान में शामिल शाख और आसमां हरदम
खून और युद्ध का प्रेम से बैर रहे चलो न आगाज़ कर लें

२८ मई २०१३
चित्र गूगल से साभार
  

20 comments:

  1. कौन याद रखता है आज ज़माने में किसे
    हमने तो अपने दर का पता आपसे जाना
    waah....

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  2. कौन याद रखता है आज ज़माने में किसे
    हमने तो अपने दर का पता आपसे जाना,,,

    वाह !!! बहुत उम्दा,,

    Recent post: ओ प्यारी लली,

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  3. बड़ा अजीब सा रिश्ता है ज़िन्दगी तुझसे
    जब भी नज़रें उठाता हूँ साबका है गम से

    सुंदर भावाभिव्यक्ति ..

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  4. खूबसूरती से बयाँ किये अलफ़ाज़

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  5. चिड़ियों के उड़ान में शामिल शाख और आसमां हरदम
    खून और युद्ध का प्रेम से बैर रहे चलो न आगाज़ कर लें.... बहुत सुंदर भावाभिव्यक्ति ..

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  6. यूँ ही जीकर अपनी खातिर तो कोई भी मर जाता है
    मेरे खातिर हर पल जीने की तमन्ना रख तो जानूं
    वाह... बहुत खूबसूरत रचना....

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  7. मैं माँगने ही तो गया था इश्क तेरे दर पे

    इश्क मांगना नहीं पड़ता बाबु साहब. प्रयास और मेहनत जरुर करनी पड़ती है वह भी ईमानदारी से .यह तो नेमत है ईश्वर की .

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  8. यूँ ही जीकर अपनी खातिर तो कोई भी मर जाता है
    मेरे खातिर हर पल जीने की तमन्ना रख तो जानूं..

    बहुत खूब ... जीने का चेलेंज है ... प्रेम करने वाले ही कबूल सकते हैं ...
    लाजवाब रचना है ...

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  9. जीवन के कुछ कडवे सत्‍य अत्‍यन्‍त प्रभावी रूप से सामने आते हैं इस प्रस्‍तुति में।

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  10. बहुत ही खूबसूरती से आपने जज़्बात को बयान किया है.. जो भी विधा हो इस रचना की, लेकिन बहुत शानदार है!!

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    1. सलिल भाई जी प्रणाम सहित आपके विधा प्रेम के लिए आभार आपने सदा की भांति अपने प्रेम की बारिस से रचना को सींचा ऋणी हूँ आपके हाथों का जीवन भर। जिस दिन विधा सीख गया आपको सबसे पहले लिखूंगा अभी तो बस मन के भावों का अंकन

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    2. शायद आपको मेरी बात ने आहत किया, जबकि मेरा यह उद्देश्य कदापि नहीं था!! क्षमा प्रार्थी हूँ!! आशा है क्षमा प्रदान करेंगे, अन्यथा ह्रदय में कचोट रहेगी!! सादर!!

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    3. सलिल भाई जी आप जैसे हितैषी की किसी भी बात का बुरा क्या मानना वास्तव में मैं किसी भी निश्चित विधा को अपना नहीं पाया
      मैं एक खास विधा में लिखता हूँ उसकी चर्चा एक पुरे पोस्ट में करूँगा उसके पूर्व आपसे चर्चा भी करूँगा शेष फिर कभी

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  11. "प्रेम न खेती ऊपजे प्रेम न हाट बिकाय
    राजा - परजा जेहि रुचय शीष देइ लै जाय ।
    जब मैं था तब हरि नहीं अब हरि है मैं नाहिं
    प्रेम-गली अति सॉंकुरी जा में दो न समाहिं ।"
    कबीर

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  12. कौन याद रखता है आज ज़माने में किसे
    हमने तो अपने दर का पता आपसे जाना
    ..बहुत खूब ... प्रेम की यही तो ताकत है ..

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  13. उम्दा.. बस एक अलग ही अहसास...

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  14. प्रेम किसी मिठाई सा लगता है मुझे तो
    सुंदर भावना मीठा अहसास

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  15. लालित्यमयी भावनाओं का सहज प्रवाह !
    बहुत बढि़या।

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  16. वाह, क्‍या बात कह दी है.

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