गुरुकुल ५

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Monday 13 May 2013

सत्यं शिवं सुन्दरं


सत्यं शिवं सुन्दरं

मान्यताएँ पौराणिक ही हों?
युग का बंधन?
सतयुग, त्रेता, द्वापर या कलियुग

सत्य क्या है?
शिव क्या है?
सुन्दर क्या है?

सत्यवादी कौन?
राजा हरिश्चन्द्र?

धर्मराज के  अवतार
राजा युधिष्ठिर क्यों नहीं?

अश्वत्थामा हतो हतः
नरो वा कुंजरो?
युधिष्ठिर से पूछा
और पांचजन्य की गूंज में
विसरित हो गया सत्य?

तब सत्यवादी युधिष्ठिर
हर युग में
सत्यवादी राजा हरिश्चन्द्र ही?
सालता है मन को?

अक्षय तृतीया को
अशांत ह्रदय
प्रश्न करता है
जन से

१३ मई २०१३
विक्रम संवत २०७०
वैशाख शुक्ल अक्षय तृतीया
समर्पित तथागत ब्लॉग के सर्जक
श्री राजेश कुमार सिंह को

22 comments:

  1. स्वर्गारोहण पर्व में युधिष्ठिर ने अर्धसत्य की सजा पाई है -वे धर्मराज हैं,
    पर हरिश्चन्द्र ही सत्यवादी है.[मेरा नजरिया]
    [नरो वा कुंजरो की बात महाभारत में इन शब्दों में नहीं है,जबकि प्रचलित यही है ]

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    1. हमारे आदरणीय अग्रज,
      नरो वा कुंजरो की बात महाभारत में किन शब्दों में है, बता कर ज्ञानवर्धन करें, आपकी पांडित्‍यपूर्ण टिप्‍पणी के लिए हार्दिक आभार और सादर प्रणाम स्‍वीकार करें.

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  2. प्रश्न गम्भीर् है॥ अपना अपना नजरिया है ,,पौराणिक मान्यताएँ के अनुसार ही
    यही सत्यं यही शिवं यही सुन्दरं है॥

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  3. सुंदर समर्पण. पौराणिक मान्यताएँ भी कसौटी पर हैं.

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  4. बहुत ही सुन्दर और सार्थक प्रस्तुतीकरण.

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  5. मरिचिअत्रिभगवानांगिरा पुल्ह क्रतु,
    पुलस्तश्च वशिष्ठश्च सप्तैते ब्राह्मणा सुता:

    अक्षय तृतीया पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं।

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  6. कई प्रश्नों के सीधे उत्तर नहीं होते ...
    क्या धर्म बड़ा है या सत्य ... पर शिव सुन्दर जरूर है ..

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  7. तब सत्यवादी युधिष्ठिर
    हर युग में
    सत्यवादी राजा हरिश्चन्द्र ही?
    सालता है मन को?

    सार्थक प्रश्न ... विचारणीय

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  8. आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल १४ /५/१३ मंगलवारीय चर्चा मंच पर राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आपका वहां स्वागत है ।

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    1. आदरणीया राजेश कुमारी जी आपका स्नेह बरसा और आपने रचना को मंगलवारीय चर्चा मंच पर स्थान दिया आभार
      अक्षय तृतीया की शुभकामना

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  9. सत्‍य पर प्रश्‍न करता सुंदर सवाल.

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  10. prasangwash kai bar kisi prashan ke uttar anutrit hi rah jaate hain ...kai bar ye sahi bhi lagta hai kyonki lohe ko loha hi katta hai ....sundar prastuti ....

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  11. ब्लॉग बुलेटिन परिवार का ह्रदय से आभारी कि अक्षय तृतीया के पावन अवसर पर रचना को शामिल किया

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  12. प्रश्न कठिन है और संदेह स्वाभाविक
    क्या धर्माचरण सत्य नहीं?
    क्या सत्य का मार्ग धर्म नहीं?
    फिर
    सत्यवादी हरिश्चन्द्र और धर्मराज युधिष्ठिर ही क्यों
    सत्यवादी युधिष्ठिर और धर्मराज हरिश्‍चन्‍द्र
    क्‍यों नहीं?

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    1. आपके अमूल्य और मार्गदर्शक टिपण्णी का इंतजार सदा बना रहता है

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  13. बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
    शेअर करने के लिए शुक्रिया!

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  14. पौराणिक व्याख्या के माध्यम से प्रस्तुत विचारणीय प्रश्न

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    1. आदरणीया डॉ मोनिका शर्मा जी यहीं तो अटक जाता है ?

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  15. " युधिष्ठिर " = जो युध्द में भी स्थिर रहे , वही है युधिष्ठिर । यह सच है कि
    महाभारत के युध्द में उन्होंने आधा झूठ बोला , पर यह आवश्यक था । सत्य की
    स्थापना के लिए बोला गया झूठ , सौ - सत्यों के बराबर है । " शठे शाठ्यम्
    समाचरेत् ।" युधिष्ठिर मुझे बहुत अच्छे लगते हैं । 'यक्षप्रश्न ' का उत्तर कोई भी
    पाण्डव न दे सका पर युधिष्ठिर ने यक्ष के प्रश्नों का उत्तर दे कर अपने भाइयों को
    पाषाण से पुनः , मनुष्य के रुप में पा लिया । " सत्यमेवजयते नानृतम् ।"

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    1. आप सत्य को स्वीकार करती हैं आपने रचना पर अपनी प्रतिक्रिया दी लेखन सफल हुआ ह्रदय से आभार

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  16. सच बोलना अत्यन्त सरल है किन्तु एक सामान्य मनुष्य सच नहीं बोल पाता । सच
    बोलना साहस का काम है । आम आदमी न सच बोल पाता न सच को सह पाता है ।
    सत्य का निर्वाह करने वाला अकेला पड जाता है , सब उससे कतराते हैं ,उसे कोई
    नहीं चाहता । वटवृक्ष को कोई पसन्द नहीं करता । उसकी छाया सबको अच्छी लगती
    है पर उसका विशाल व्यक्तित्व कोई सह नहीं पाता । क्या वास्तव में , सत्य हजारों
    अश्वमेध से श्रेष्ठ है ? क्या वास्तव में सत्य में हजार हाथियों का बल होता है ?

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  17. आपने तो बहुत ही महत्‍वपूर्ण बात को रेखांकित किया है। इस ओर कभी ध्‍यान ही नहीं गया। बतरस के लिए (और लोगों को उलझाने के लिए) अच्‍छा-खासा विषय दे दिया आपने।

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