गुरुकुल ५

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Wednesday 1 May 2013

झूठ /आदर्श



झूठ आदर्श का पूरक है?
और आदर्श झूठ का संपूरक है?
झूठ ही आदर्श को स्थापित कर देता है?
आदर्श झूठ की जननी है?

जो सच है वह आदर्श है?
जो आदर्श है उसका कहीं भी अस्तित्व है?
जो है नहीं वही आदर्श
मृगमरीचिका की भांति?

बियावान ज़िन्दगी
सरपट
किन्तु कंटीली राहें
बेमौसम बरसात
झुलसता दिन
सर्द रात
खाली पेट
खुले हाथ

झूठ पर टिका सच

चंदामामा आयेगा
मालपुआ पकायेगा

हम सब खायेंगे?
हर रोज?

बिना नागा?

२५.०८.2०००
चित्र गूगल से साभार

20 comments:

  1. चंदामामा आयेगा
    पुआ पकायेगा.....
    sacchi bat dard ke dhundh men lipta sach ....

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  2. सच बात.... झूठ पर टीका संसार ...बधाई ...सुंदर रचना

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  3. "सत्यमेवजयते नानृतम। "
    सदैव सत्य की ही विजय होती है ,असत्य की नही ,यह ध्रुव सत्य है । वेद- सम्मत
    भाष्य है ।
    "धीरज धर्म मित्र और नारी ,आपतकाल परिखएउ चारी ।"
    तुलसी बाबा ने कहा है ।

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  4. आज भी कमजोरों का सुख उनके सपने ही हैं रमाकांत भाई !
    फुटपाथ पर सोते वे, अक्सर गलीचों का आनंद महसूस कर लेते हैं अगर यह स्वप्न न हों तो जीवन भयावह हो जायगा !
    सादर

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  5. काश कभी सच भी हों ......

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  6. khoobsurat rachna. har pankti ke ant mein laga prashnavachak chinh- umda andaz.

    -Abhijit (Reflections)

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  7. आपको यह बताते हुए हर्ष हो रहा है के आपकी यह विशेष रचना को आदर प्रदान करने हेतु हमने इसे आज के (१ मई, २०१३, बुधवार) ब्लॉग बुलेटिन - मज़दूर दिवस जिंदाबाद पर स्थान दिया है | बहुत बहुत बधाई |

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  8. बाबू तुषार राज रस्तोगी जी आपने रचना को सम्मान दिया ह्रदय से आभारी

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  9. झूठ आदर्श का पूरक है?
    और आदर्श झूठ का संपूरक है?
    झूठ ही आदर्श को स्थापित कर देता है?
    आदर्श झूठ की जननी है,,,,

    बेहतरीन भावपूर्ण सुंदर प्रस्तुति ,,,रमाकांत जी

    RECENT POST: मधुशाला,

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  10. सुंदर,कविता मार्मिक गजब का अहसास
    मजदूर दिवस पर सार्थक
    उत्कृष्ट प्रस्तुति


    विचार
    jyoti-khare.blogspot.in
    कहाँ खड़ा है आज का मजदूर------?

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  11. चंदामामा आयेगा
    मालपुआ पकायेगा
    आपकी ये लाइने पढ़कर एक फिल्म के टुकडे की याद आ गई.

    जब वह समुद्र के किनारे नीली लॉन्ग ड्रेस में पागल समुद्री हवाओं पर नाचती है तो ऐसा लगता है कि फेनी के गिलास में नीला चाँद उतर आया हो लेकिन गिलास के टूट जाने से चाँद को क्या फर्क पड़ता है

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  12. स्‍वादिष्‍ट.

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  13. बियावान ज़िन्दगी
    सरपट
    किन्तु कंटीली राहें.....................बहुत सुन्दर ...........

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  14. कुछ झूठ , कई सच से ज्यादा ताकतवर और लाभकारी सिद्ध होते हैं।

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  15. अलग सोच लिए नए प्रश्नों के साथ आई है यह कविता.
    बचपन से ही झूठ में लिपटी यह लोरी 'चन्दा ममा आएगा ... कल्पना करना सीखती है.झूठ से ही कई बार मन बहल जाते हैं तो उस समय तो वह बुरा नहीं हुआ .

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  16. कविता का मर्म महसूस होता है अंतस में!! बहुत सुन्दर!!

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  17. सार्थक, मार्मिक अहसास लिए सुन्दर प्रस्तुति...

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  18. सदियों से चाँद यही करता आ रहा है ... और हमारा पेट भी शायद भर ही देता है.

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    Replies
    1. आदरणीय अमृता तन्मय जी आपका स्नेह मिला ह्रदय से आभार प्रणाम सहित स्वीकार करें **** सुप्रभात

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