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Friday 15 June 2012

प्रतीक्षा


क्यों करूं प्रतीक्षा?
तुम्हारी तरह मैंने भी
सीख लिया अब
किसी और का हाथ थामना
कन्धे पर सिर रखना
दुखड़ा सुनाना अपने अंदाज में
भिगा देना कन्धे
और छोड़ जाना
आंसुओं के दाग

तुम्हारी दासतां को
दरकिनार कर दिया मैंने
तोड़ दिये बंधन
करता हूं विचरण
विहग सा निस्सीम गगन में

गाता हूं
मुक्ति के गीत
जिसको स्वर दिये थे
तुमने कभी
अब ध्वनित है वही

करता हूं बंधन मुक्त
तुम्हें भी मोह से
और हो जाता हूं मुक्त
तुम्हारे पाश से

गगन तुम्हारा
विस्तार तुम्हारा
विचरण करो
पखेरू सदृश्य
पंख फैलाकर
चूर थकन से कभी
मस्ती मगन यदि

आना तुम्हारा मेरी छांव में
डैने समेटे
पलकें बिछाये
बाहें फैलाकर
प्रतीक्षा-प्रतीक्षा
प्रतीक्षा-प्रतीक्षा,
प्रतीक्षा?

करते थे जैसे हम
एक दूजे की कभी

17.03.2010
चित्र गूगल से साभार
तथागत ब्लाग के सृजन कर्ता श्री राजेश कुमार सिंह
को समर्पित उनकी रचना धर्मिता पर

21 comments:

  1. अक्सर होता यह है पुराना लगाव बचा रहता है पर दिलचस्पी समाप्त हो जाती है

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  2. सतत प्रतीक्षारत मन ...कभी बंधना चाह्ता है ....कभी मुक्ति ...!!
    सुंदर रचना ...

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  3. आप उन विरल कवियों में से हैं जिनकी कविता एक अलग राह अपनाने को प्रतिश्रुत दिखती हैं।

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  4. अति सुन्दर! व्यवहारिक दृष्टि जीवन को आसान बनाती है।

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  5. मन की नाराजगी है ये.....
    किसी और का हाथ थामने की बात भी करता है और प्रतीक्षा भी करता है.....

    बहुत भावपूर्ण रचना.....

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  6. मन की दुविधा कभी पास रहना चाहता है तो कभी दूर जाना चाहता है....बहुत खुबसूरत रचना..

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  7. वक्त के साथ किसी और का हाथ थाम तो
    लेते है पर पहले प्यार को भुलाना मुश्किल होता है...
    कोमल भाव लिए रचना...
    बहुत सुन्दर
    :-)

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  8. प्रतीक्षा?
    करते थे जैसे हम
    एक दूजे की कभी,,,

    बहुत बेहतरीन सुंदर भावभिव्यक्ति ,,,,,रमाकांत जी बधाई

    RECENT POST ,,,,पर याद छोड़ जायेगें,,,,,

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  9. जि़ंदगी के ऐसे अनुभव को शब्दों में बड़ी कुशलता से संजोया है आपने।

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  10. भावमय करते शब्‍द ... अनुपम प्रस्‍तुति ।

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  11. बहुत खूबसूरत ..

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  12. तुम्हारी दासतां को
    दरकिनार कर दिया मैने
    तोड़ दिये बंधन
    करता हूं विचरण
    पखेरू सा निस्सीम गगन में

    हर शब्द बोल पड़े हैं । यह कविता मन को छू गयी । मेरे पोस्ट "हम रऊआ सबके भावना के समझत बानी" पर आप आमंत्रित हैं । धन्यवाद ।

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  13. प्रतीक्षा का अनवरत सिलसिला.

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  14. अनंत प्रतीक्षा, और उस प्रतीक्षा के साथ जीना सीख लेना दोनों बहुत जरूरी हैं|

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    बेहतरीन रचना


    दंतैल हाथी से मुड़भेड़
    सरगुजा के वनों की रोमांचक कथा



    ♥ आपके ब्लॉग़ की चर्चा ब्लॉग4वार्ता पर ! ♥

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    ♥सप्ताहांत की शुभकामनाएं♥

    ब्लॉ.ललित शर्मा
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  16. प्रतीक्षा करना अच्छा लगता है |
    आशा

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  17. वाह जी ...................अति उत्तम

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  18. खुबसूरत अल्फाजों में पिरोये जज़्बात....शानदार |

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  19. गाता हूं
    मुक्ति के गीत
    जिसको स्वर दिये थे
    तुमने कभी
    अब ध्वनित है वही'
    -----
    कितना कुछ बयान करती हैं ये पंक्तियाँ !
    ..बहुत अच्छी भाव अभिव्यक्ति है .

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  20. अति सुंदर ...भावमयी पंक्तियाँ

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  21. बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति.......

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