गुरुकुल ५

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Thursday 7 November 2013

टहलते दरख़्त


                                              मेरी भांजी * श्रीमती अंजू ठाकुर *
*
मौन हैं लोग आज
टहलते दरख़्त तले
सूरज के साये में
जागता मुर्दा

**
अंधों के हाथ पकड़
भूख से हँसता बच्चा
अमन चैन पर चिढ़ते
पंडित, मौलवी, फ़क़ीर

***
बर्फ की गर्मी से
पिघलता क़ाफ़िर
नरम पत्थर पर
चैन की नींद ले

****
ओस से सुखी चादर
ख़ुशी के आंसू समेट
रोशनी फैलाती
अमावस की रात

*****
ठहरता वक़्त
बुझते दीपक से
छलता फिर द्वार द्वार
प्रेम का सन्देश धर

******
धूप में टहलता छॉंव
नित इशारे कर
ठहर दम लेने दे
सहर ज़रा होने दे

*******
गमगीन शैतान
दिखता आकुल आज
दुःख शबाब पर?
गर्दिश में गम?

********
आंसुओं में डूबा
बेरहम कातिल
हंस रहा?
ज़ख्मों पर

*********
जूठन पर इतराता
लंगड़ा भिखारी
लड़ते लोग
कुर्सी की खातिर

*********
सुलगता समंदर
मौन हैं लहरें
हुजूम दरिंदों का
सन्देश शांति ले

०२ नवम्बर २०१३

समर्पित मेरी भांजी * श्रीमती अंजू ठाकुर *को { चित्र }

***आजकल एक अज़ीब सी बेचैनी है दिलो दिमाग में
सब कुछ बिखरा सा , चीजें अपना अस्तित्व खोती और
मेरा यकीन डगमगाता शायद इसी ऊहापोह का नतीज़ा ये रचना

12 comments:

  1. गहरे भाव लिए रचना !!
    आभार आपका !

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  2. आंसुओं में डूबा
    बेरहम कातिल
    हंस रहा?
    ज़ख्मों पर.haiwaniyat ki parakastha dil ko dahlane lagi hai aajkal ...

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  3. Bahar nikaliye is paristhiti se aur purana josh bhariye apni rachnaaon mein..

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  4. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज शुक्रवार को (08-11-2013) "मेरा रूप" (चर्चा मंच 1423) "मयंक का कोना" पर भी होगी!
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  5. भांजी को गहरे अनुभवों से पिरोई सार्थक समर्पित रचना ...

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  6. बहुत ही सुंदर सार्थक समर्पित प्रस्तुति !
    =============== =========
    RECENT POST -: दीप जलायें .सार्थक समर्पित

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  7. बहुत सुन्दर एवं गहरे अनुभवों से रचित .
    नई पोस्ट : उर्जा के वैकल्पिक स्रोत : कितने कारगर
    नई पोस्ट : कुछ भी पास नहीं है
    नई पोस्ट : A Smile !

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  8. जूठन पर इतराता
    लंगड़ा भिखारी
    लड़ते लोग
    कुर्सी की खातिर
    बैचेनी समय के साथ दूर हो जायगी .. पर समय का अनुभव बहुत कुछ कह जाता है ... जैसे की ये छंद ... जिंदगी देखने का नजरिया कैसा हो ...

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  9. बेचैनी को तो आपने शब्दों में उतार दिया अब कैसी बेचनी .. भाभी जी को मेरा प्रणाम

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  10. यकीन कुछ ज्यादा ही डगमगाये लगता है

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  11. ज़िंदगी के एक नये रूप का ही बोध कराती रचना ......

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